कांग्रेस के भीतर उठती आवाजें, धामी पर अनुशासन की जांच तो रंजीत पर क्यों नही आई आंच

उत्तराखंड कांग्रेस इन दिनों अंदरूनी सवालातों से जूझ रही है, बगावत, विद्रोह, भितरघात, दलबदल और षड्यंत्र जैसे शब्द हर रोज उत्तराखंड कांग्रेस की सियासत में सुनाई दे रहे हैं। फिलहाल जो चेहरा सबसे ज्यादा नजरों में है वह धारचूला से कांग्रेस के विधायक हरीश धामी है…धामी उन विधायकों में से हैं जिन्होंने मोदी लहर को भी हावी नहीं होने दिया। लेकिन कांग्रेसी विधायक के बगावती तेवर इन दिनों उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रस्तावना को तैयार कर रहे हैं। यूं तो पार्टी से बड़ा कोई नहीं होता और कांग्रेस के मौजूदा हालातों में पार्टी को सख्त एक्शन की भी जरूरत है। लेकिन कोई भी कार्यवाही न्याय उचित और समान हो तभी उसका फायदा पार्टी को मिल सकता है।

बहरहाल ताजा खबर यह है कि पार्टी के भीतर मौजूदा एपिसोड को लेकर कुछ आवाजें उठने लगी हैं, इन्हें सवाल कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा, दरअसल प्रश्न पार्टी के ही हाईकमान से पूछा जा रहा है और पार्टी के नेता दबी जुबान में फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष करण महरा की भूमिका को लेकर कुछ सवाल खड़े कर रहे हैं। पार्टी के भीतर कुछ आवाजें उठ रही है जो सिर्फ विधायक हरीश धामी पर ही जांच बैठाने से जुड़ी है। प्रश्न किया जा रहा है कि पार्टी की तरफ से रंजीत रावत के बयानों को लेकर ऐसे सार्वजनिक बयान क्यों नहीं दिए गए। पूछा जा रहा है कि क्या नए प्रदेश अध्यक्ष करण महरा टिकट बेचे जाने पर रंजीत रावत के बयानों को लेकर स्थिति स्पष्ट करेंगे।

वैसे तो भविष्य में पार्टी के किसी भी नेता पर कोई कार्रवाई होती दिन नहीं दिखाई दे रही है, बशर्ते विधायक हरीश धामी अब अपने पुराने बयानों की पुनरावृति ना करें। लेकिन देखा जाए तो कांग्रेस के भीतर का यह पूरा चित्रण वर्चस्व की लड़ाई से जुड़ा है, जिसे दिल्ली में बैठा हाईकमान रच रहा है। इसमें डायरेक्टर की भूमिका में प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव दिखाई देते हैं। वैसे तो इस नाटक में और भी कई किरदार दिखाई देते हैं लेकिन असल बात हरीश धामी और रंजीत रावत की है। एक पूर्व मुख्यमंत्री के बेहद चाहते हैं और दूसरे कभी चहेते रहे।

कांग्रेस में आज सबसे ज्यादा चर्चा प्रदेश अध्यक्ष करण महरा की है, ऐसा इसलिए क्योंकि करण महरा इस मामले में सबसे ज्यादा फंसे हुए दिखाई देते हैं क्योंकि उन्हें अनुशासन की बात करते हुए एक समान कार्रवाई का संदेश भी देना है। और सभी गुटों को साधकर हाईकमान के फैसले को सही भी साबित करना है। लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा जब हरीश धामी पर अनुशासन की कार्यवाही करते वक्त वह रंजीत रावत के टिकट बेचने के बयान का भी उतना ही संज्ञान लें। यानी तूफान के हालात में एक छोटी सी कश्ती पर संतुलन बनाकर रखना करण माहरा की सबसे बड़ी परीक्षा है।

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