देहरादून में 23 साल की उम्र में “रानी” ने आखिरकार दम तोड दिया.. वैसे तो रानी पिछले कुछ समय से बीमार बताई जा रही थी.. लेकिन बेहतर देखरेख और चिकित्सीय उपचार के बाद रानी के फिर से पूरी तरह ठीक होने की भी उम्मीद लगाई जा रही थी। देहरादून चिड़ियाघर की यह “रानी” (गुलदार) न केवल चिड़ियाघर प्रशासन के लिए बेहद चहेती बनी हुई थी.. बल्कि पर्यटकों के लिए भी सबसे ज्यादा आकर्षण “रानी” को लेकर ही था।
चिड़ियाघर में रानी को उसके बचपन से ही पाला गया था, करीब 3 महीने की उम्र में लाई गई रानी जीवन के 23 बसंत इसी चिड़ियाघर में देख चुकी थी.. इतने लंबे समय से चिड़ियाघर परिवार का हिस्सा रही रानी के जाने से यहां काम करने वाले तमाम कर्मचारी और अधिकारी भी खासे दुखी दिखाई दिए.. रानी के जाने से एक बड़ा खालीपन चिड़ियाघर में महसूस किया जा रहा है।
“रानी” को 2001 में पौड़ी के लैसडाउन से लाया गया था, यहां से रेस्क्यू करने के बाद इसे देहरादून के चिड़ियाघर में भेजने का फैसला लिया गया था। इसके बाद से ही रानी चिड़ियाघर में स्थित बाड़े में रह रही है। यहां भगत जी खासतौर पर इसकी देखभाल और खाने पीने का ख्याल रखते थे..भगत जी को आहट भी रानी पहचानती थी और उनके आने के समय से पहले ही वो बाड़े में चक्कर काटते हुए उनका इंतजार करती दिखती थी। भगत जी के लिए भी ये एक बड़ा दुखदाई पल है..