पहले कैट और फिर हाईकोर्ट ने भी राजीव भरतरी को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स यानी हॉफ के पद पर दोबारा चार्ज देने के निर्देश दे दिए..ये तो सरकार, शासन से राजीव भरतरी की लंबी लड़ाई रही होगी..लेकिन हम बात करेंगे एक ऐतिहासिक दिन और वन महकमे के लिए एक काले दिन की भी..हाईकोर्ट के फैसले ने जहां आज का दिन ऐतिहासिक बनाया तो करीब 3 घंटे के इंतजार ने इस दिन को वन महकमे के लिए काला दिन साबित कर दिया।
हाईकोर्ट के आदेश के अनुक्रम में आज सुबह 10:00 बजे से पहले ही राजीव भरतरी हॉफ का चार्ज लेने वन मुख्यालय पहुंच गए.. छुट्टी का दिन होने के बावजूद महकमे के मुखिया के चार्ज लेने की वजह से यह माना गया कि विभाग में तमाम बड़े अफसर इस दौरान मुख्यालय में मौजूद होंगे, शासन का भी कोई अधिकारी आदेश के साथ वन मुख्यालय में होने की उम्मीद थी.. लेकिन राजीव भरतरी को वन विभाग में सन्नाटा ही मिला.. वैसे तो उन्हें हॉफ के कमरे में जाकर चार्ज लेना था लेकिन हॉफ के कमरे में तो ताला लगा हुआ था. लिहाज वह अपने साथ आए रिटायर्ड वन कर्मचारी धनंजय सिंह के साथ प्रशासन की जिम्मेदारी देख रहे अधिकारी के कमरे में ही उनकी खाली कुर्सी के सामने की कुर्सी पर बैठ गए। फिर शुरू हुआ इंतजार का सिलसिला.. इस दौरान हॉफ के कमरे की चाबी की भी खोजबीन जारी रही, जिनको इसकी जिम्मेदारी है उन्होंने भी खुद के पास चाबी होने से इनकार कर दिया। उधर शासन भी आदेश टाइप होने की बात कहकर इंतजार करवाता रहा. हालांकि फिर यहां आईएफएस अफसर मनोज चंद्रन भी दिख गए.. लगा कि शायद अब धीरे-धीरे दूसरे अफसर भी पहुंचेंगे, आसपास के डीएफओ से लेकर दूसरे अधिकारी भी फूलों का गुलदस्ता लेकर अपने अफसर का स्वागत करेंगे। लेकिन मुख्यालय में तैनात आईएफएस अफसरों का पहुंचना तो दूर देहरादून के डीएफओ ने भी यहां आना मुनासिब नहीं समझा। वह बात अलग है कि फोन से कई अधिकारी अपने करीबियों के जरिए वन मुख्यालय की जानकारी ले रहे थे।
वैसे तो हाईकोर्ट के निर्देश होने के चलते राजीव भरतरी को चार्ज लेने के लिए शासन के आदेश की भी आवश्यकता नहीं थी लेकिन वह चाहते थे कि शासन आदेश कर दे तो बिना विघ्न के वे इस पद को ग्रहण कर लेंगे। इस दौरान सचिव वन विजय कुमार यादव को भी फोन खडखडाया गया, जवाब आया कि आदेश टाइप हो रहा है, तीन लाइन के आदेश को 3 घंटे तक नहीं दिया जा सका.. अब तो कुछ लोग यह कहने लगे कि सरकार सुप्रीम कोर्ट से इस स्थिति को बदलने के मूड में हैं और इसीलिए आदेश नहीं किए जा रहे हैं,
लेकिन आदेश की कॉपी देखकर लगता है कि देरी तो आदेश में क्या लिखा जाए इसको लेकर हुई होगी। और शायद ही किसी ने इस तरह का आदेश पहले देखा होगा, सचिव वन विजय कुमार यादव ने आदेश तो कर दिया लेकिन यह आदेश बड़ा ही अस्पष्ट दिखाई दिया। आदरणीय महोदय लिखकर हाईकोर्ट के आदेश का पालन करें लिख दिया गया, कौन सा आदेश क्या आदेश कुछ नहीं.. देख कर लग रहा था कि यहां सब ठीक नहीं है। बहरहाल करीब 3 घंटे से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद जाकर इस आदेश को ईमेल के जरिए राजीव भरतरी तक पहुंचा दिया गया और राजीव भरतरी ने भी चार्ज ले लिया।
इस सब स्थिति के बीच एक बार हाफ के कमरे की चाबी का मामला भी उठा.. जिम्मेदारी वाले कर्मचारी ने तो चाबी नहीं होने की बात कह दी.अब कमरे में कैसे जाया जाए इसपर माथापच्ची..हल्की शासन का आदेश आने से पहले चाबी को ढूंढ निकाला गया.. खबर यह भी मिली की चाबी तो कहीं वन मुख्यालय के बाहर थी, इस दौरान डीएफओ कार्यालय बड़ा सक्रिय सा दिखाई दिया, हो भी क्यों ना कर्मचारी तो सब उनके ही थे..
एक चर्चा ये भी रही कि चार्ज मिलने के साथ कोई कार्रवाई से जुड़ा आदेश भी साथ साथ तैयार हो रहा है, खैर इस पूरे मामले में सरकार ने जिस तरह बेवजह पार्टी बनकर फजीहत करवाई वह सरकार का गलत निर्णय साबित हुआ। उधर राजीव भरतरी के काम वाई उनकी ईमानदारी वाली छवि.. सरकार के खिलाफ अकेला लड़ने की बात सोच कर कैमरे के पीछे तमाम कर्मचारी और अक्सर उनके साथ दिखाई दिए।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में वन विभाग में एक ऐसा इतिहास लिख दिया गया जो आने वाले अफसरों के लिए नजीर तो बनेगा ही लेकिन कुछ बातों को लेकर सरमिंदगी का भी एहसास जरूर करवाएगा।