उत्तराखंड कांग्रेस में फिर गदर मचने जा रहा है, यह बात पार्टी में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में नामित सदस्यों की सूची के कारण कहीं जा रही है जिससे पार्टी के कई नेता खफा हैं. खबर है कि पार्टी के कई दिग्गज नेता और विधायक पीसीसी सदस्यों को लेकर अपने द्वारा दिए गए नामों का चयन नहीं होने से नाराज है। एक दिन पहले कांग्रेस भवन में नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्यों की बैठक आहूत हुई हैरानी की बात यह थी कि ना तो इसमें पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पहुंचे नाही प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल. इस बैठक में शामिल न होने वालों में केवल यह नाम ही शामिल नहीं थे इसके अलावा कई विधायक भी बैठक से नदारद रहे.
बताया जा रहा है कि इनके ना होने की वजह इनकी नाराजगी रही और इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जिन सदस्यों को नामित किया गया है उनमें नाराज होने वाले नेताओं के करीबियों को जगह ना दिया जाना है। बताया जा रहा है कि बड़े नेताओं ने तो अपनी सूची तक संगठन को दे दी थी लेकिन इसमें कई नामों को शामिल नहीं किया गया और इसीलिए यह दिग्गज नेता नहीं पहुंचे। हालांकि इन नेताओं से जुड़े करीबियों ने इनकी बैठक में न पहुंचने के पीछे अपनी दूसरी कहानी बताई लेकिन दबी जुबान में पार्टी के नेता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा के स्तर पर नाम चयन के दौरान इन लोगों को पूरी तरह से तवज्जो ना दिए जाने को भी वजह मानते हैं।
पिछले दिनों हरीश रावत पहले ही हरिद्वार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपनी राय ना लिए जाने पर संगठन को निशाना बना चुके हैं ऐसे में माना जा रहा है कि अब नए पीसीसी सदस्यों को लेकर पार्टी में बवाल हो सकता है और इसमें सबसे ज्यादा निशाने पर करण मेहरा रहने वाले हैं. हरीश रावत और करण मेहरा की दूरियां पहले ही सर्व विदित है उधर प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद प्रीतम सिंह भी करण मेहरा से कुछ दूर-दूर दिखाई देते हैं, गणेश गोदियाल को तो हरीश रावत का ही चेहरा पार्टी के नेता मानते हैं लिहाजा उनका दूर रहना तो बनता ही है। दूसरी तरफ विधायक अपने खेमे के हिसाब से अपना स्टैंड ले रहे हैं।
कांग्रेस की यही हालात सरकार को फ्री हैंड दे रहे हैं हालांकि पिछले दिनों करण मेहरा का आक्रामक रुख ही था जिसने भर्ती में भाई भतीजावाद मामले को उठाने का काम किया लेकिन इस तरह पार्टी के भीतर फंसने के बाद करण मेहरा इस रुख को कितना बरकरार रख पाएंगे यह कहना मुश्किल है। मौजूदा स्थिति में सरकार पर दबाव बनाने में करण मेहरा अकेले देख रहे हैं।