धनोल्टी विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी में बगावत के आसार दिखाई दे रहे हैं, दरअसल इस सीट पर पुराने भाजपाइयों को पार्टी ने दरकिनार करते हुए निर्दलीय रूप से विधायक रहे प्रीतम सिंह पंवार को पार्टी में शामिल करवा लिया। प्रीतम पंवार की दिल्ली में गुपचुप रूप से अनिल बलूनी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी में हुई जॉइनिंग ने साफ कर दिया कि धनोल्टी विधानसभा सीट पर भाजपा को अपने क्षेत्रीय नेताओं पर विश्वास नहीं था और उन्होंने प्रीतम सिंह पंवार को ही सबसे मजबूत मानते हुए उन पर दांव खेलना उचित समझा। निर्दलीय रूप से धनोल्टी विधानसभा सीट जीतने वाले प्रीतम पंवार को भाजपा से टिकट मिलना तय है, लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी के कुछ दूसरे नेता अपने टिकट को लेकर आस लगाए हुए हैं इनमें सबसे प्रमुख पूर्व विधायक महावीर सिंह रांगड़ और पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा का नाम शामिल है इसके अलावा राजेश नौटियाल और दूसरे कई पार्टी के नेता भी इस सीट पर दावेदार हैं लेकिन सबसे मजबूत दावेदारी के रूप में महावीर सिंह रांगड़ ही दिखाई दे रहे हैं। साल 2017 में भी विधायक होने के बावजूद महावीर सिंह का भाजपा ने टिकट काट दिया था। उनकी जगह भाजपा ने केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के समधी नारायण सिंह राणा को टिकट दिया था जिन की करारी हार हुई थी इस बार भी महावीर सिंह इस सीट पर टिकट मांग रहे हैं और इसे अपनी आखिरी सियासी पारी भी मान रहे हैं लिहाजा लाजमी है कि यदि भाजपा ने इस सीट पर टिकट नहीं दिया तो महावीर सिंह निर्दलीय रूप से भी ताल ठोंक सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यदि महावीर सिंह ने निर्दलीय रूप से चुनाव नहीं भी लड़ा तो भी वह और नारायण सिंह राणा समेत तमाम दूसरे नेता और क्षेत्रीय संगठन भी प्रीतम सिंह पंवार की चुनाव के दौरान मुसीबतें बढ़ा सकते हैं।
प्रीतम सिंह पंवार पर दांव खेलकर यूं तो भाजपा ने खुद को मजबूत स्थिति में लाने की कोशिश की है लेकिन क्षेत्रीय संगठन में प्रीतम सिंह का अंदर खाने जोरदार विरोध है। खुले रुप से भी पार्टी के कई नेता इस बात को कहते रहे हैं और प्रीतम सिंह पंवार को टिकट देने की स्थिति में भितरघात होना भी तय है।
आपको बता दें कि प्रीतम सिंह पंवार इससे पहले यमुनोत्री विधानसभा सीट से यूकेडी के टिकट पर चुनाव लड़े थे और विधायक बन कर आए थे इस दौरान उन्होंने बैसाखी वाली सरकार को समर्थन देकर मंत्री पद भी हासिल किया था। इसके बाद उन्होंने 2017 में धनोल्टी विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने लेकिन इस बार भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार होने के कारण वह सामान्य विधायक ही रह गए और भाजपा सरकार में कुछ खास काम भी नहीं करवा पाए। शायद इसीलिए प्रीतम पवार को लेकर लोगों में नाराजगी बढ़ती हुई दिखाई दी और इस बात को जाहिर तौर पर प्रीतम सिंह पंवार भी समझ रहे थे और इसीलिए उन्होंने इस बार बिना खतरा मोल लिए भाजपा में शामिल होकर कैडर वोट का सहारा लेना ही उचित समझा।
प्रीतम पंवार को इस चुनाव में भाजपा के कैडर वोट का फायदा होना तो लाजमी है लेकिन अपनी ही पार्टी के नेताओं का उनके विरोध में काम करना भी तय है उधर यदि महावीर सिंह चुनाव लड़े तो यह मुसीबत प्रीतम पंवार के लिए दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में आने वाले चुनाव परिणामों पर भी इसका असर हो सकता है।