उत्तराखंड में पहली बार श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय ने ऐसी पहल की है जिसे हर कोई सराह रहा है। दरअसल श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय में इस सत्र से एमबीबीएस के छात्रों के लिए फाऊंडेशन कोर्स के तहत स्थानीय भाषा के रूप में गढ़वाली भाषा सिखाई जा रही है। मेडिकल काऊंसिल ऑफ इंडिया के मानकों के अनुसार इस सत्र से एमबीबीएस कोर्स के प्रथम सेमिस्टर में यह लागू की गई है। एमबीबीएस के विद्यार्थी भी काफी रूचि से गढ़वाली भाषा सीख रहे हैं।
खास बात यह है कि स्थानीय भाषा के जरिए चिकित्सक उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में भी अपनी सेवाएं देने के दौरान लोगों के साथ आसानी से संवाद कर सकेंगे यही नहीं चिकित्सीय परामर्श लेने आने वाले पहाड़ी क्षेत्र या उत्तराखंड के लोगों को भी स्थानीय भाषा मे अपनी बात चिकित्सक तक पहुंचाने का मौका मिल पाएगा।
श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्रीमहंत देवेंद्र दास माहाराज के प्रयासों से इसी सत्र से विश्वविद्यालय में बीए एवं एमए स्तर पर गढ़वाली भाषा के डिग्री पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) यू एस रावत का कहना है कि एसजीआरआर विश्वविद्यालय गढ़वाली भाषा के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में उभर सके इसके लिए विश्वविद्यालय हर संभव प्रयास कर रहा है। एमबीबीएस कोर्स में स्थानीय भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य किए जाने से गढ़वाली भाषा में कॅरियर की संभावना और बढ़ गई है। मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) अनिल मेहता का कहना है कि मेडिकल काऊंसिल ऑफ इंडिया के निर्देशों के अनुसार एमबीबीएस के छात्रों को स्थानीय भाषा सिखाई जा रही है। इसका उद्देश्य है कि भावी डॉक्टर क्षेत्रीय मरीजों से बेहतर संवाद स्थापित कर सकें व मरीजों की समस्या को भली प्रकार समझ सकें। एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज गढ़वाल मंडल में पड़ता है और यहां आने वाले ज्यादातर स्थानीय लोग गढ़वाल क्षेत्र से आते हैं इसलिए स्थानीय भाषा के रूप में गढ़वाली सिखाई जा रही है। इसका एक और फायदा यह है कि ग्रामीण परिवेश से आने वाले लोगों की परेशानियों को भावी डॉक्टर समझ सकेंगे। डॉक्टरी कोर्स की लगभग साढ़े चार साल की अवधि के दौरान एमबीबीएस के छात्रों का मरीजों से मिलना भी होता है। यदि भाषा का ज्ञान हो तो सीनियर डाक्टरों की देखरेख में एमबीबीएस के छात्र-छात्राएं ज्यादा बेहतर ढंग से मरीजों की समस्याओं को समझ सकते हैं। इसके अलावा यदि भविष्य में कोर्स पूरा करने के बाद यदि डॉक्टर प्रदेश में ही प्रैक्टिस करना चाहते हैं तो उन्हें पर्वतीय क्षेत्रों के मरीजों की परेशानी जानने के लिए किसी भाषा के जानकार की सहायता पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। कई मरीज स्थानीय भाषा में ही अपनी परेशानी बताते हैं। कोई बात मरीज अन्य को नहीं बताना चाहता। डॉक्टरों के स्थानीय भाषा ज्ञान से मरीज की निजता (प्राईवेसी) की भी रक्षा होती है। किसी अन्य पर डॉक्टरों की निर्भरता न होने पर समय भी बचता है। डॉ. मेहता ने बताया कि स्थानीय भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा भी सिखाई जा रही है। एमसीआई के निर्देशों के अनुसार एमबीबीएस छात्रों को योग का भी प्रशिक्षण दिया जाना है। गढ़वाली भाषा सिखाने वाले जनसंचार के सहायक प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि छात्रों की गढ़वाली सीखने में काफी रुचि है और काफी हद तक देश के विभिन्न प्रदेशों से आए छात्र-छात्राओं ने गढ़वाली भाषा बोलनी भी शुरू कर दी है। अंग्रेजी भाषा सिखाने वाली डॉ. अमनदीप कौर का कहना है कि विद्यार्थी अंग्रेजी का भी अच्छे से गढ़वाली भाषा में अनुवाद कर रहे हैं। इतने कम समय में गढ़वाली भाषा पर इतनी पकड़ बनाना काफी सराहनीय है।
*हिलखंड*
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