उत्तराखंड में उपनल कर्मचारियों की हड़ताल पर सरकार दबाव में दिख रही है… यूं तो त्रिवेंद्र सरकार दबाव में काम करना पसंद नहीं करती लेकिन मौका चुनावी वर्ष का है लिहाजा इस बार कर्मचारियों का दबाव महसूस किया जा रहा है.. शायद यही वजह है कि उपनल कर्मचारियों को सरकार की तरफ से बातचीत का न्योता आसानी से मिला है। दरअसल उत्तराखंड में करीब 22000 उपनल कर्मचारी हैं जो कार्य बहिष्कार पर हैं और उपनल कर्मचारियों को समान काम का समान वेतन और नियमितीकरण की मांग पर अडिग दिख रहे हैं। इन सब परिस्थितियों के बीच सरकार चुनाव में कोई नुकसान नहीं उठाना चाहती लिहाजा इस मामले पर सरकार बीच का रास्ता अपनाने की कोशिश कर रही है। वैसे आपको बता दें कि सरकार इससे पहले उपनल कर्मचारियों की वेतन वृद्धि का फैसला दो बार कर चुकी है।
इस मामले में सरकार 2 तरीके के रास्ते अपना सकती है पहला की इस हड़ताल का राजनीतिक रूप से हल निकाले और कर्मचारियों से बातचीत करते हुए उपनल कर्मियों को भविष्य में ऐसा करने का आश्वासन देकर मना लें। जैसा की सरकारें अक्सर आंदोलनकारियों के साथ करती भी है।
इसमें सरकार कड़ा रुख अपनाकर उपनल कर्मियों को काम पर वापस आने के लिए भी बाध्य कर सकती है। यह दोनों बिंदु तो उपनल कर्मियों की मांगे पूरी न करने से जुड़ी हैं। लेकिन यदि सरकार उपनल कर्मियों की मांग पूरा करना चाहती है तो उसके भी कुछ रास्ते हैं।
सरकार सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले लें ताकि समान काम के बदले समान वेतन का हाईकोर्ट का फैसला लागू किया जा सके
सरकार कोई प्रारूप तैयार करके हर साल निश्चित संख्या में उपनल कर्मियों को संविदा पर लाने की भी कार्ययोजना बना सकती है
लेकिन उपनल कर्मियों को समान काम का समान वेतन और नियमित करने में सरकार के सामने बड़ी अड़चन है यह अड़चन वित्त के रूप में है प्रदेश में 22000 उपनल कर्मचारी हैं और इन सभी की मांग पूरी की गई तो प्रदेश में खाली पड़ी सरकार की तिजोरी कर्जे में डूब जाएगी। और इसका सीधा असर प्रदेश के विकास कार्यों और राज्य की वित्त से जुड़ी परेशानियों के रूप में होगा लिहाजा सरकार के लिए इन कर्मचारियों को समान काम का समान वेतन और इनके नियमितीकरण का काम करना इतना आसान नहीं होगा। ऐसे में सरकार यदि चुनावी वर्ष को देखते हुए यह निर्णय ले भी लेती है तो आने वाली सरकारों के सामने बड़ी चुनौतियां होंगी।
*हिलखंड*
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