उत्तराखंड में ऊर्जा निगम के उपनल कर्मचारियो को पिछले दिनों महंगाई भत्ते का लाभ दिए जाने से जुड़ा आदेश किया गया था, जिसे अगले 24 घंटे में ही सचिव ऊर्जा मीनाक्षी सुंदरम को वापस लेना पड़ गया। बताया गया कि वित्त विभाग के बड़े अधिकारी इस आदेश से नाखुश थे और वित्त विभाग की मंजूरी लिए बिना वित्तीय बोझ डाले जाने पर उनकी तरफ से आपत्ति दर्ज की गई थी। आदेश के विवादों में आने के बाद ऊर्जा निगम के उपनल कर्मचारी को इसका नुकसान हुआ और वह परिवर्तनीय महंगाई भत्ते से महरूम रह गए।
लेकिन अब एक बार फिर यह मामला इसलिए चर्चाओं में आ गया है क्योंकि उत्तराखंड शासन ने सचिवालय कर्मचारी और अधिकारियों के लिए सचिवालय भत्ते को 50% से बढ़कर 85% करने का आदेश जारी कर दिया है। दरअसल अब तक कर्मचारी और अधिकारियों को ग्रेड पे का 50% सचिवालय भत्ता मिल रहा था जो अब बढ़कर 85% मिलेगा। यह बता दिया जाना क्यों आवश्यक है और इसमें बढ़ोतरी क्यों की गई यह तो वित्त विभाग ही बता सकता है। लेकिन सवाल ही उठ रहा है कि छोटे कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ते पर आपत्ति दर्ज करने वाला वित्त विभाग सचिवालय के अधिकारियों और कर्मचारी के कारण पड़ने वाले वित्तीय बोझ पर कैसे मान किया यह एक बड़ा सवाल है। यदि वित्त विभाग की आपत्ति बिना वित्त विभाग की मंजूरी के महंगाई भत्ता दिए जाने को लेकर थी तो इतने दिन बीत जाने के बाद भी इस प्रस्ताव को वित्त विभाग की मंजूरी के लिए क्यों नहीं भेजा गया और अब तक इस पर फिर से आदेश क्यों नहीं हुआ। और यदि समस्या वित्तीय बोझ की है तो अभियंताओं को एसीपी का लाभ देने सचिवालय कर्मचारियों को सचिवालय भत्ता देने जैसे मामले में वित्त विभाग कैसे सहज स्वीकृति दे देता है।