संरक्षित वन क्षेत्र में अवैध काम पर सिर्फ कुछ अधिकारी ही निशाना क्यों?, तो क्या बाकी अधिकारियों की नहीं थी कोई जिम्मेदारी

पाखरो टाइगर सफारी प्रोजेक्ट को लेकर जिस तरह नियमों की धज्जियां उड़ाई गई, उस पर शासन ने विजिलेंस को जांच की जिम्मेदारी सौंपी हुई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी भी इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट तैयार कर चुकी है. लेकिन मामले को लेकर विजिलेंस ने जिस तरह गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू किया है. उसके बाद कुछ सवाल जरूर उठ रहे हैं। दरअसल कार्बेट नेशनल पार्क जैसे संरक्षित क्षेत्र में अवैध निर्माण से लेकर पेड़ों को काटे जाने तक के मामले में जब से जांच शुरू हुई है केवल कुछ अधिकारियों के नाम ही चर्चाओं में लाए गए हैं। मामले में मुकदमा भी पूर्व डीएफओ किशनचंद व अन्य के खिलाफ किया गया है। लिहाजा सवाल उठना लाजमी है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट पर क्या केवल तत्कालीन डीएफओ और रेंजर स्तर के अधिकारी ही जिम्मेदार हो सकते हैं, यानी कॉर्बेट पार्क के अंदर इतना बड़ा खेल चल रहा था और तत्कालीन डीएफओ और रेंजर के अलावा सब अनभिज्ञ थे। जबकि ऐसा मुमकिन ही नहीं है।

अब बात विजिलेंस की जांच पर करें तो फिलहाल जांच का पूरा फोकस किशनचंद और उससे नीचे के अधिकारी दिखाई दे रहे हैं। जबकि सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कॉर्बेट नेशनल पार्क के डायरेक्टर की दिखाई देती है। मामले में तीन अधिकारियों को निशाने पर लिया गया इसमें तत्कालीन रेंजर, डीएफओ और चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन शामिल हैं. किशन चंद और जेएस सुहाग को निलंबित किया गया है. जबकि निदेशक राहुल को वन महकमे के अधिकारी और जांच टीम निलंबन की संस्तुति तक नहीं कर पाई। शासन से लेकर सरकार भी निदेशक को बचाते हुए नजर आए और उन्हें केवल वन मुख्यालय से अटैच कर दिया गया। जबकि देख कर भी इन कामों को नहीं रोकने की सीधी गलती निदेशक की दिखाई देती है। यह बात केवल निदेशक कि नहीं है, तत्कालीन पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ इस मामले में कैसे पाक साफ हो सकते। कॉर्बेट में ऐसे अवैध कामों पर क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी. सरकार और वन विभाग का न्याय देखिए कि ऐसे जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही तो दूर उन्हें प्रमोट कर दिया गया। ऐसे ही बड़े अधिकारियों में जिम्मेदारों की सूची में सबसे ऊपर तत्कालीन अपर मुख्य सचिव वन पर क्यों अब तक कोई जिक्र नहीं किया जा रहा। जब तमाम अधिकारी शासन को इस गलत काम को लेकर चिट्ठी पत्री लिख रहे थे तो फिर शासन स्तर से इसको रोकने या कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं की गई। हल्की अभी निशाना सिर्फ रिटायर्ड अधिकारी ही है।

हालांकि इस मामले में विजिलेंस जांच कर रही है और इतने बड़े अधिकारियों पर हाथ डालना काफी मुश्किल होता है लेकिन इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट खुद इसकी निगरानी कर रहा है लिहाजा उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी जिम्मेदार अधिकारियों पर कुछ ना कुछ कार्रवाई तो होगी ही।

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