उत्तराखंड कॉन्ग्रेस के युवा नेता ने आज न केवल प्रदेश अध्यक्ष करण महरा को आईना दिखाया है बल्कि कांग्रेस के उस भाई भतीजावाद सिस्टम पर भी बड़ा प्रहार किया.. जिसके आरोप तमाम मंच से भाजपा के नेता लगाते रहे हैं. दरअसल पार्टी के युवा नेता अभिषेक सिंह ने विरासत में मिली राजनीति के बल पर पद कि उस परंपरा को चुनौती दी है जिसे कॉन्ग्रेस के लिए एक बड़ा दाग माना जाता रहा है. आपको बता दें कि अभिषेक सिंह (Abhishek Singh) को विरासत में ही राजनीति मिली है. अभिषेक सिंह के पिता प्रीतम सिंह उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हैं और फिलहाल चकराता विधानसभा सीट से रिकॉर्ड बार से विधायक चुने गए हैं. उनके दादा गुलाब सिंह भी यहीं से विधायक बनकर कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे.जाहिर है दादा और पिता की विरासत को अभिषेक को ही आगे बढ़ाना है लेकिन वो अपनी राजनीति को बेहद अलग ट्रेक पर ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं, मौजूदा कदम से तो यही लगता है।
खबर ये है कि अभिषेक सिंह ने कॉन्ग्रेस के पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है। अभिषेक सिंह ने यह इस्तीफा पार्टी में वरिष्ठ और काबिल कांग्रेसियों को पीसीसी में सदस्य के रूप में जगह नहीं मिलने के कारण दिया है. अभिषेक सिंह ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण महरा को पत्र लिखकर अपने इस्तीफे की वजह को बताया है। अभिषेक सिंह ने लिखा कि पार्टी में कई काबिल लोगों को सदस्य नहीं बनाया गया जिसके कारण पार्टी के नेता और कार्यकर्ता नाराज है, ऐसे में वह इस पद से इस्तीफा दे रहे हैं ताकि उनकी जगह किसी ज्यादा काबिल और अनुभवी व्यक्ति को जगह दी जा सके। उन्होंने कहा कि वह अपने दादा और पिता की तरह कांग्रेस को मजबूत करने के लिए काम करते रहेंगे।
अभिषेक सिंह का इस्तीफे से जुड़ा ये पत्र इसलिए खास है क्योंकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष काबिल लोगों को पीसीसी में सदस्य बनाने की बात कहते रहे हैं, लेकिन बेहद पुराने और अनुभवी नेताओं को इस में जगह ना देकर बड़े नेताओं के बच्चों या करीबियों को जगह दी गई.. ऐसे में अभिषेक सिंह ने जो कदम उठाया और हिम्मत के साथ अपनी बात कही वह वाकई काबिले तारीफ है और इसमें पूरी पार्टी के सिस्टम को न केवल चुनौती दी है बल्कि प्रदेश अध्यक्ष की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
बड़ी बात यह है कि प्रीतम सिंह के अलावा बाकी पार्टी के और भी नेता हैं जिनके करीबी या बच्चों को इस तरह से पीसीसी में जगह दी गई लेकिन ना तो इन बड़े नेताओं ने कुछ कहा और ना ही उनके बच्चों ने ऐसी कोई हिम्मत दिखाई ।