युवा उत्तराखंड का बाल-बाल कर्जे में डूब गया है..पिछले 20 सालों में प्रदेश अपनी जीडीपी का 24.36 प्रतिशत कर्जा ले चुका है.. राज्य स्थापना यानी साल 2000 में बड़े भाई उत्तरप्रदेश से करीब 4400 करोड़ का कर्ज देवभूमि को विरासत में मिला..लेकिन इस उम्मीद के साथ कि शायद एक दिन कर्जा ही नहीं बल्कि प्रदेश विकास की नई मिशाल कायम करेगा…लोगों ने कांग्रेस और भाजपा की सरकारें प्रदेश में बनवाई..लेकिन ये उम्मीदें टैब धराशायी हो गयी जब यह कर्जा कब होने के बजाय हर साल सैकड़ों करोड़ में बढ़ता चला गया… आज हालत यह है कि उत्तराखंड 71500 करोड के कर्ज में डूब गया है.. अंदाजा लगाइए कि उत्तराखंड को अपने इस कर्ज की एवज में करीब 5800 करोड़ रुपए ब्याज के ही देने पड़ रहे हैं, जो कि उत्तराखंड की कुल जीडीपी का 2.1% है। अब सोचिए कि जिस प्रदेश में 5800 करोड रुपए ब्याज की देनदारी होती हो वहां विकास कैसे हो पाएगा.. बहरहाल अब उत्तराखंड का भविष्य केंद्र के रहम पर ही आकर टिक गया है.. वैसे आपको बता दें कि आने वाले दिनों में भी यह कर्जा कम होने की स्थिति में नहीं है क्योंकि प्रदेश को जीएसटी लागू होने के बाद हर साल करीब 3% ग्रोथ रेट में भी नुकसान झेलना पड़ रहा है। उधर जीएसटी लागू होने के दौरान पहले ही केंद्र सरकार यह कह चुकी है कि राज्यों को प्रतिपूर्ति के रूप में 2022 तक की सहायता दी जाएगी.. यदि वाकई ऐसा हुआ तो उत्तराखंड का आर्थिक रूप से डूबना तय है। हालांकि उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है और केंद्र में भी भाजपा ही मौजूद है, ऐसे में त्रिवेंद्र सरकार इस दौरान केंद्र से कितना पैसा और राहत प्रदेश को दिलवा पाती है यह देखना काफी दिलचस्प होगा।
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