जानिए-कहां के शिक्षकों का रहा दबदबा, और किन पर उठे सवाल

उत्तराखंड में 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणाम जारी होते ही न केवल छात्र-छात्राओं की मेहनत का आंकलन हो गया.. बल्कि शिक्षकों की परफॉर्मेंस भी इससे तय हो गयी.. आपको बता दें कि उत्तराखंड में दसवीं के लिए कुल 147155 परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी थी… जिनमें 113191 बच्चे उत्तीर्ण हुए हैं.. यानी कुल 76.91 प्रतिशत बच्चे उत्तीर्ण होने में सफल हुए.. जो कि पिछले साल से .47  प्रतिशत ज्यादा है। इंटरमीडिएट में कुल 119164 परीक्षार्थी परीक्षा में बैठे जिनमें से 95645 बच्चे पास हुए यानी कुल 80.26% बच्चों ने परीक्षा उत्तीर्ण की जो कि पिछले साल की तुलना में .13 प्रतिशत ज्यादा है। इस बार भी हर बार की तरह बालिकाओं ने ही बाजी मारी है।

परीक्षा परिणामों से मैदानी जिलों के शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

शिक्षा विभाग में तबादले को लेकर शिक्षकों में मैदानी जिले में तैनाती लेने की होड़ को सब जानते हैं… लेकिन अब हम इसे परिणाम के रूप में यदि परफॉर्मेंस माने तो देखने से साफ है कि मैदानी जिले काफी फिसड्डी साबित हुए हैं.. राज्य में दसवीं के परिणामों के लिहाज से चंपावत जिला रहा है.. इस जिले का रिजल्ट 84.93% रहा है। दसवीं के परिणामों के लिहाज से सबसे फिसड्डी जिला उधम सिंह नगर रहा.. इस मैदानी जिले में 72.39% बच्चे उत्तीर्ण हुए। सबसे खराब परफॉर्मेंस वाले जिले में देहरादून का भी नाम शुमार है यहां 76.84% बच्चों ने परीक्षा उत्तीर्ण की।

इंटरमीडिएट के लिहाज से देखें तो यहां भी पहाड़ी जिले बागेश्वर ने बाजी मारी है यहां का रिजल्ट 90% रहा है.. रुद्रप्रयाग जिले ने दूसरा स्थान हासिल कर बेहतर परिणाम पाएं हैं… इस जिले का रिजल्ट 89.22 प्रतिशत रहा है। सबसे फिसड्डी जिले के रूप में यहां भी देहरादून का नाम शुमार है.. देहरादून का कुल रिजल्ट 72.12% रहा है।

इसका आकलन करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पहाड़ी जिले सुविधाओं और व्यवस्थाओं के लिहाज से काफी पिछड़े हैं लेकिन बावजूद इसके सरकारी सिस्टम में परीक्षा परिणामों के लिहाज से पहाड़ी जिलों का आगे निकलना मैदानी जिलों के लिए सबक भरा है। खास बात तो यह है कि राजधानी में पोस्टिंग पाने वाले  शिक्षकों के लिए भी यह विचारणीय प्रश्न है। हालांकि जानकार कहते हैं कि मैदानी जिलों में क्रीमी लेयर कहे जाने वाले छात्र अंग्रेजी विद्यालयों में प्रवेश ले लेते हैं जबकि पहाड़ों में ऐसा नहीं है… और यही कारण है कि मैदानी जिले उत्तराखंड बोर्ड में पहाड़ी जिलों की तुलना में पिछड़ जाते हैं।  वैसे यह तर्क भी काफी हद तक ठीक लगता है लेकिन छात्रों को क्रीम बनाना शिक्षकों का ही काम है ऐसे में मैदानी जिलों के शिक्षकों को और व्यवस्था को इसमें सुधार करना होगा।

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