उत्तराखंड ऊर्जा निगम कर्मचारियों को लेकर शासन में अधिकारियों के वादे और आश्वासन सब हवा-हवाई साबित हुए हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि 15 दिनों के भीतर कर्मचारियों की कुछ मांगों पर कार्यवाही होने का वायदा शासन की तरफ से किया गया था लेकिन यह वायदा आज 15 दिन पूरे होने तक पूरा नहीं हो पाया है। आपको याद दिला दें कि ऊर्जा निगम कर्मचारी वही कर्मचारी हैं जिन्होंने 15 दिन पहले हड़ताल का बिगुल फूंका था और हड़ताल का समय शुरू होते ही शासन ने आश्वासन का लॉलीपॉप देकर इनकी हड़ताल को वापस करवा लिया था। बहरहाल 15 दिन पूरे होने के साथ ही जो उम्मीदें कर्मचारियों की थी वह फिलहाल पूरी होती नजर नहीं आ रही है हालांकि कर्मचारियों ने इस दौरान मुख्यमंत्री से लेकर शासन के अधिकारियों तक चक्कर काटने में कोई कमी नहीं छोड़ी, यहां तक कि एमडी से भी मुलाकात कर इस मामले पर जल्द आदेश की मांग की गई लेकिन एक बार फिर नए आश्वासन के साथ इस मामले को कुछ और लंबा खींच दिया गया। यह मांगे कितनी जायज हैं यह तो शासन तय करेगा लेकिन सवाल यह है कि आश्वासन की समय सीमा तक वह सभी मांगे पूरी क्यों नहीं हो पाई जिनके लिए शासन ने इन कर्मियों को भरोसा दिलाया था और यदि यह मांगे पूरी नहीं हो सकती थी तो फिर क्यों शासन की तरफ से उन्हें आश्वासन दिया गया। ऐसे में अब देखना होगा कि ऊर्जा निगम कर्मचारी आने वाले दिनों में क्या कदम उठाते हैं और अब तक शासन और सरकार के दबाव में रहने वाले कर्मचारी क्या कुछ हिम्मत दिखा पाते हैं। दरअसल समय-समय पर संगठन के पदाधिकारियों और कर्मचारियों में भी मतभेद दिखाई दिए हैं और यहां तक कि बिना ऊर्जा निगम कर्मचारियों से पूछे संगठन हाल ही में हुई हड़ताल के दौरान शासन से बात करते हुए अपनी हड़ताल को वापस लेने तक का फैसला कर चुका है जिसके बाद कर्मचारियों ने बिना सार्वजनिक बातचीत के लिए गए फैसले पर अपना विरोध भी दर्ज कराया था। जाहिर है कि ऊर्जा निगम में संगठन के पदाधिकारियों का रवैया दबाव वाला रहा है और मैनेजमेंट के दबाव में ही यह पदाधिकारी दिखाई देते रहे हैं यहां तक की खुले रूप से अपनी मांग को लेकर अपनी बातें रखने में भी पदाधिकारी पीछे हटते दिखाई दिए हैं। इस रुख के चलते क्या कर्मचारियों की मांगे पूरी हो पाएंगी यह एक बड़ा सवाल है।
*हिलखंड*
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