उत्तराखंड में योजनाओं का क्या हश्र होता है इसका उदाहरण पेयजल विभाग की विभिन्न परियोजनाओं से समझा जा सकता है। दरअसल योजना के तहत देहरादून जनपद में 217 किलो मीटर पाईप लाईन बिछानी थी, किन्तु अभी तक 15 करोड की लागत से 47 किलो मीटर पाईप लाईन का कार्य अपूर्ण है। उधर 2008 में जिन्दल कम्पनी द्वारा पेयजल के लिए 3000 करोड की परियोजना पूर्ण की जानी थी किन्तु केवल 1000 हजार करोड रूपये का 33 प्रतिशत, कार्य पूर्ण करने के बाद 2017 में यह कम्पनी कार्य छोड कर चली गई। उत्तराखण्ड के 31 शहरों का चयन करने के बाद केवल 05 शहरों में कार्य किया गया। रूडकी, देहरादून, नैनीताल, रामनगर हल्द्वानी में इस परियोजना की प्रगति अत्यन्त असन्तोषजनक रही। यह सब स्थिति पेयजल विभाग की समीक्षााा बैठक के दौरान सामने आई। चिंता की बात यह है कि आज विभागीय मंत्री ने इस मामले में अधिकारियोंं को न केवल फटकार लगााई बल्कि जल्द से जल्द इस काम को करने केेे निर्देश भी दिए।
इस मामले को लेकर सवाल यह है कि शासन में जिन आईएएस अधिकारियों को इस विभाग की जिम्मेदारी दी गई है वह आखिरकार सचिवालय के एसी कमरों में बैठकर क्या करते हैं और क्यों नहीं ऐसे मामले में फौरन संबंधित कार्यदाई संस्था और अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाती। मंत्री की समीक्षा बैठक का ही क्यों विभागीय अधिकारी इंतजार करते हैं साफ है कि सचिवालय में बैठकर अधिकारी खानापूर्ति कर रहे हैं यदि ऐसा नहीं होता तो इस मामले में अब तक तेजी से काम हुआ होता और संबोधित अधिकारी और कार्यदाई संस्था के खिलाफ भी कार्रवाई हो गई होती। लेकिन सचिवालय की कार्यप्रणाली जिस पर मुख्यमंत्री भी अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं उसके कारण तमाम योजनाएं सालों साल तक लटकी रहती है और धरातल पर कोई भी उन्हें आगे बढ़ाने के लिए दिशानिर्देश या सख्ती दिखाते हुए नहीं दिखाई देता।
*हिलखंड*
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